लोकप्रियता या व्यावहारिकता - संकट में सरकार किसे चुने

इकॉनमी पर ज्ञान बांटना बहुत आसान हैं, पैसे थोड़े ही लगते हैं, जितना देना चाहे दो। सरकार को ये करना चाहिए, वो करना चाहिए; पता नहीं कुछ क्यों नहीं कर रही। लोन की क़िश्तें सरकार को देनी चाहिए, किराए लेने पर रोक लगा देनी चाहिए, स्कूलों की फीस माफ़ कर देनी चाहिए, इनकम टैक्स माफ़ कर देना चाहिए.. 

किसी भी विषय को देखने के दो नज़रिये होते हैं - व्यावहारिक और लोकप्रिय। हम सोचते हैं की सरकार लोकप्रिय नज़रिये से चलती हैं पर नहीं, लोकप्रिय नज़रिये से सिर्फ चुनाव लड़े जाते हैं और चुनाव जीतने के बाद जो सरकार बनती हैं वहां सिर्फ और सिर्फ व्यावहारिक नज़रिया ही चलता हैं।  

एक व्यत्किगत अनुभव साझा करता हूँ जो शायद मेरी बात को बेहतर तरीके से समझा सकेगा – 

कुछ साल पहले की बात हैं, मैं एक विदेशी इंजीनियरिंग कंपनी की भारतीय शाखा में 'बिज़नेस डेवलपमेंट' का प्रमुख था। उन दिनों पूर्वोत्तर के राज्यों में बहुत आना जाना हुआ, देश का ये अनछुआ भाग कंस्ट्रक्शन व्यवसाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। आज़ादी के इतने सालों बाद भी वहां सड़के, सीवर पाइपलाइन, पानी  की सप्लाई, पुल जैसे बुनियादी प्रोजेक्ट्स की कमी हैं इसीलिए सरकार वहां विशेष ध्यान दे रही हैं। ख़ैर मुझे वहां एक विशेष प्रोजेक्ट की चर्चा में शामिल होने के लिए बुलाया गया, राज्य या शहर का नाम तो मैं नहीं साझा करूंगा पर प्रोजेक्ट के तहत हिंसा का मार्ग छोड़, शान्ति के रास्ते पर लौटे लोगों के पुनर्वास का ख़ाका तैयार करना था। सुबह आर्मी के जवानों की सुरक्षा में ज़मीन इत्यादि का सर्वे पूरा कर, शाम को सेक्रेटरी के साथ मीटिंग में बैठे और अनुमानित प्रोजेक्ट कॉस्ट लगभग 5-6 करोड़ के आस पास का बजट बना के सेक्रेटरी के सामने रख दिया।   

सेक्रेटरी ने तुरंत ही उसे खारिज कर दिया और स्पष्ट कहा की करोड़ की बात छोडो अगर 20-25 लाख़ में कुछ होता है तो बताओ नहीं तो कोई बात नहीं। जैसा अभी आपको लग रहा हैं की इतनी अच्छी बात तो थी, 5-6 करोड़ में क्या जाता, कुछ पूर्व बागी शान्ति के पथ पर आ रहे थे, अच्छा ही तो था पता नहीं क्यों सरकार ने मना कर दिया  - बिलकुल ऐसा ही मुझे भी लगा था।  

इसके बाद सेक्रेटरी ने जो बात कही उसे मैं कभी नहीं भूलूंगा, उस दिन पता चला की सरकार आईएएस ऑफिसर्स की ट्रेनिंग पर जो खर्चा करती हैं वो बिलकुल जायज़ हैं।  सेक्रेटरी ने कहा - आज अगर मैं कुछ बाग़ियों के पुनर्वास पर इतना खर्चा करूँगा; उनके लिए पक्के घर, पानी की पाइपलाइन, सड़क वगैरह बनाऊंगा तो मैं लाखों और गरीबों को जिन्होंने अभी तक कानून के डर से बन्दूक नहीं उठायी, उन्हें प्रेरित करूंगा की जाओ तुम भी बन्दूक उठाओ, कुछ साल दहशत मचाओ और फिर आत्मसमर्पण कर दो; सरकार पक्के घर, पानी की पाइपलाइन, सड़क वगरैह बना के मुफ़्त में दे देगी।  

ठीक इसी तरह, आज की स्थिति को समझिये। सरकार के लिए बड़ा आसान हैं घोषणा करना की सभी उद्योगों की 6 महीने के कर्ज़ की किश्त सरकार देगी पर सोचिये इस कदम से उन सभी उद्योगों को क्या संकेत जाएगा जो इस विपदा में भी अपना क़र्ज़ सही तरीके से अदा कर रहे हैं ? बड़ा आसान हैं कहना की स्कूल 3 महीने के लिए फीस न लें पर क्या स्कूल तीन महीने के लिए अपने स्टाफ को भी तनख़्वाह न दे ? मकान मालिक को तीन महीने का किराया लेने से सरकार रोक दे तो  मकान मालिक जिसका अपना घर किराए की आमदनी से चलता हो, वो क्या करे ?

किसी भी तरह की छूट या रियायत देने से पहले ये सोचना पड़ता हैं की कहीं इसका कोई विपरीत प्रभाव तो नहीं हो सकता। कहीं ऐसा न हो की आज एक वर्ग को आप मदद दे रहे हैं क्यूंकि वह परेशानी में हैं; इसे देख कर परेशानी में तकलीफ़ सह कर भी, सरकार के साथ खड़ा एक दूसरा वर्ग भी अपने फायदे और नुक्सान की गणना करनी शुरू कर दे।  

इसीलिए इकॉनमी पर चिंता करना छोड़ अपने अपने कार्य पर ध्यान दीजिये, सरकार अकेली बहुत हैं चिंता करने के लिए, इसीलिए आपने उसे चुना हैं - लोकप्रियता छोड़ व्यावहारिकता पर आइये।  

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